संकल्प: कवि- निर्मल चन्द्र 'तेजस्वी'
फिर खौफनाक अंधेरो ने मुझे डराना चाहा है,
राह के पत्थरो ने मुझे रोकना चाहा है.
मेरे भविष्य को नेस्तनाबूद करने के अभियान में
आज वे लोग भी शामिल है
जो पूर्व के मेरे विजय जुलूसो की
अग्रिम पंक्तियों में थे
पर में भाग्य या समय को दोष नहीं दूंगा,
न ही उन शुद्रात्माओ को कुछ कहूँगा
क्योंकि मै जानता हूँ कि
इंसान माटी का पुतला हैं
और पुतलो से देवत्व कि अभिलाषा रखना
निरा पागलपन हैं
पर ऐसा भी नहीं हैं कि मैं यह लड़ाई हार जाऊंगा
मेरा संकल्प है - मैं तूफ़ान के उस पार जाऊंगा
आज कोई भी अँधेरा
इतना बली नहीं है जो रोशनी से लड़ सके
इसलिए तिमिर के तमाम साथियों !
मुझसे आँख मिलाने का दुस्साहस मत करो|
मैं ज्वाजल्यमान सूर्य हु
अपनी मौत मत वरो |
मेरे साथ आओ , उजाला फैलाओ!!
कर्मठ वर्तमान से उज्जवल भविष्य बनाओ!!!!!!!!
फिर खौफनाक अंधेरो ने मुझे डराना चाहा है,
राह के पत्थरो ने मुझे रोकना चाहा है.
मेरे भविष्य को नेस्तनाबूद करने के अभियान में
आज वे लोग भी शामिल है
जो पूर्व के मेरे विजय जुलूसो की
अग्रिम पंक्तियों में थे
पर में भाग्य या समय को दोष नहीं दूंगा,
न ही उन शुद्रात्माओ को कुछ कहूँगा
क्योंकि मै जानता हूँ कि
इंसान माटी का पुतला हैं
और पुतलो से देवत्व कि अभिलाषा रखना
निरा पागलपन हैं
पर ऐसा भी नहीं हैं कि मैं यह लड़ाई हार जाऊंगा
मेरा संकल्प है - मैं तूफ़ान के उस पार जाऊंगा
आज कोई भी अँधेरा
इतना बली नहीं है जो रोशनी से लड़ सके
इसलिए तिमिर के तमाम साथियों !
मुझसे आँख मिलाने का दुस्साहस मत करो|
मैं ज्वाजल्यमान सूर्य हु
अपनी मौत मत वरो |
मेरे साथ आओ , उजाला फैलाओ!!
कर्मठ वर्तमान से उज्जवल भविष्य बनाओ!!!!!!!!
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